Gunjan Kamal

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कुछ मजबूरियां

मेरी सच्ची साथी! हम  सबके जीवन में कुछ न कुछ मजबूरियां अवश्य होती है और उन्हीं मजबूरियों के कारण हमें कुछ ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं जो सुरक्षा के दृष्टिकोण से सही होते हैं। मेरी मां जब तक एक गृहिणी थी शायद!तब तक तो सब कुछ ठीक रहा होगा लेकिन जब वह मिडिल स्कूल के अध्यापिका बन गई तब जिंदगी में भागदौड़ इतनी हो गई कि सब कुछ सही करना उनके लिए अकेले संभव नहीं था।

मेरी सच्ची साथी! भैया मुझसे छः साल बड़े तो थे और मां की मदद भी करते थे लेकिन क्योंकि हमारा संयुक्त परिवार था इसलिए बहुत सारे ऐसे फैसले थे जो हमारे ताऊजी ही किया करते थे। मेरे पापा आर्मी में थे तो साल में वह बस दो-तीन महीने के लिए ही घर आ पाते थे ऊपर से रविवार को छोड़कर मां भी 10:00 - 4:00 तक स्कूल में ही रहती थी। मां तो नहीं चाहती थी कि  कान्वेंट से नाम कटवा कर उनके स्कूल में मेरा दाखिला हो लेकिन घरवाले चाहते थे कि यदि ऐसा होता है तो मैं अपनी मां की नजरों के सामने तो रहूंगी। मां के पास और कोई विकल्प घर वालों ने छोड़ा नहीं था क्योंकि सुरक्षा के दृष्टिकोण से लड़कों की अपेक्षा लड़कियों पर थोड़ी ज्यादा ही निगरानी हमारे समाज की तरफ से रखी जाती है। खैर! इन सब बातों को दरकिनार करते हुए बात यह थी कि जो घरवाले चाहते थे वैसे ही मेरी मां को करना पड़ा।

मेरी सच्ची साथी! खुशी तो थी कि मैं मां के स्कूल में ही पढ़ रही हूॅं । साथ ही आना - जाना भी हमारा होता था। उसे स्कूल के सभी अध्यापक और अध्यापिकाएं सभी मुझे बहुत मानते थे और चाहते थे कि हर चीज में मैं आगे रहूं, चाहे वह गाने की प्रतियोगिता हो...खेल की प्रतियोगिता हो या फिर पढ़ाई संबंधित कोई और भी प्रतियोगिता हो।

मेरी सच्ची साथी! जैसे हर इंसान हर चीज में निपुण नहीं हो सकता, मैं भी वैसे ही थी। पढ़ाई और खेल में तो ठीक-ठाक ही थी लेकिन गाने मुझसे सुर में गाएं नहीं जाते थे और तो और  मुझे गाना गाना पसंद भी नहीं था। हां ! सुनती अवश्य थी। स्कूल में एक मैडम थी राधिका मैडम! वह संगीत की अध्यापिका थी और हम सबको वह ही संगीत  सिखाती भी थी लेकिन मुझे उसमें रूचि थी ही नहीं इसीलिए मैं उस कक्षा में जाने के लिए कोई न कोई बहाना अवश्य बना ही देती थी।

मेरी सच्ची साथी! जब भी हमारे फाइनल एग्जाम होते थे संगीत की परीक्षा अवश्य ली जाती थी। जिस दिन संगीत की परीक्षा होने वाली होती थी मैं स्कूल ना जाने के कारण ढूंढा करती थी और इस बात को मेरी मां समझ जाती थी और मुझे स्कूल ले जाकर ही दम लेती थी। उस वक्त मां पर मुझे बहुत गुस्सा आता था लेकिन हम बच्चे कर ही क्या सकते हैं। मन मसोड़कर  रह जाती थी और फिर मन ना होते हुए भी  संगीत की परीक्षा देनी ही पड़ती थी।

मेरी सच्ची साथी! उसी स्कूल में जब मैं दूसरी क्लास में थी उस वक्त रोज होने वाली एक बात थी जिससे मैं बहाने बना कर भागना चाहती थी, उस बात को तुमसे जब अगली बार मिलूंगी तब साझा करूंगी। अब चलती हूॅं! जब तक मैं वापस से तुमसे मिलने नही आ जाती तब तक के लिए मुझे जाने की इजाजत दो।

       🙏🏻🙏🏻 बाय बाय 🙏🏻🙏🏻

गुॅंजन कमल 💗💞💗


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1 Comments

Radhika

09-Mar-2023 01:46 PM

Nice

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